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लेखनी कविता -19-Feb-2022 (देश भक्ति )

जलती धरती मन मेरा......
ये धरती मेरी ये वतन मेरा
जलती धरती सुलग रहा मन मेरा
इस वसुन्धरा और मन को शीतल,कोमल निर्मल,आज से अभी से बनाये।
ये समय ये पल कही बीत न जाए
धरती मेरी माँ तो अम्बर मेरे पिता
और पवन इनकी संतान
आग मेरे भाई तो नीर शीतल मेरी बहन
इस पाँच मुलभुल त्तव से धरा बनी 
ऐसी पाक धरा पर न करो कोई द्वेष
ये हरि भरी धरती ये हरा भरा अपना देश 
मिल कर रहे सभी धर्म के प्राणी
इससे होगा लाभ नही होगा हानि
काहे का झगड़ा फिर काहे का द्वेष
मिट जाए गिला-शिक़वा ना बचे अवशेष
मिटा दो अपने अंदर का रावण रूपी सोच को
धारण करो रावण की अच्छाई चारो वेदों के ज्ञानी महादेव के आपार भक्त अला-लला कहते प्रसन्न होते महादेव स्वामी ।
इनकी अच्छाई को तो धारण करो मगर बुराई से सिख लो भाई 
परायी नारी पराया धन में आँख न मारो भाई
ये धरती सुलग रही मन मेरा समुन्दर का रुख 
मोड़ कर ये धरा को शीतल बनाये।

जिस्म का एक एक कतरा लहू कुर्बान है।

सारे जहा से अच्छा अपना हिन्दुस्तान है।।

अरि एक हो या हो दस हजार 
ढूंढ के करु खत्म सरे–बाजार

बेपनाह मोहब्ब्त,मुल्क से हमे
है अमन और है वादी में बहार ।।.....

©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला - महासमुन्द (छःग)


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1 Comments

Seema Priyadarshini sahay

19-Feb-2022 05:27 PM

वाह

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